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Chapter 8: मानसिक संघर्ष और भूतिया रहस्य

प्रियंका की नींद अब किसी खौ़फनाक यथार्थ से कम नहीं थी। किले में बिताए गए दिनों के दौरान, उसे लगातार अजीब और डरावने सपने आने लगे थे। रात को सोते समय उसे ऐसा लगता था जैसे किला खुद उसके भीतर समा गया हो, और उसके दिमाग की गहरी तहों में दबी डर और संदेह की परछाइयाँ इधर-उधर दौड़ रही थीं।

एक रात, प्रियंका ने देखा कि वह किले के अंदर अकेली चल रही है, और उसके पीछे कोई गहरी कटी हुई हंसी सुनाई दे रही है। उसकी नजरें एक क्षण के लिए किले की दीवारों पर जाती हैं, जहाँ पुराने चित्र और शब्द जले हुए थे। जैसे ही उसने एक चित्र को ध्यान से देखा, वह अचानक एक अजनबी चेहरे में बदल जाता है—वह चेहरा, जो प्रियंका ने कभी भी नहीं देखा था, लेकिन अब वह उसे लगातार अपने ख्वाबों में देख रही थी। वह चेहरा उसके खुद के चेहरे जैसा ही था, लेकिन उसमें एक अजीब सी निराशा और भय था।

प्रियंका अचानक उठ बैठी, हांफते हुए। उसके माथे पर पसीना था, और दिल तेजी से धड़क रहा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सपने उसकी आंतरिक बेचैनी के कारण थे, या फिर ये कुछ और—क्या यह किले के दुष्प्रभाव का परिणाम था? क्या वह अब किले के रहस्यों में इतनी गहरी खो चुकी थी कि वह अपनी मानसिक स्थिति को खो रही थी?

प्रियंका ने अपनी आँखों को मलते हुए खिड़की से बाहर देखा, जहां चांदनी की हल्की सी रोशनी थी। यह एक ठंडी रात थी, और हवा में गहरे खामोशी का अहसास था। प्रियंका का मन एक बार फिर उस डरावने सपने के बारे में सोचने लगा, और साथ ही, उसे यह भी महसूस हो रहा था कि वह अब खुद को और ज्यादा खो रही थी। क्या यह सचमुच किले का रहस्य था, या फिर यह उसकी अपनी मानसिक स्थिति का नतीजा था?

दिन में भी प्रियंका को उसी तरह की घबराहट महसूस होने लगी थी। वह जब भी मोहन के पास बैठती, उसके मन में एक अजीब सा संदेह उठता। मोहन, जो हमेशा से प्रियंका का सबसे करीबी साथी था, अब उसे कुछ अलग सा लगने लगा था। उसकी आँखों में वह आत्मविश्वास और समझदारी थी, जो कभी प्रियंका को पसंद थी, लेकिन अब वह कुछ और ही महसूस कर रही थी। क्या मोहन जानबूझकर कुछ छिपा रहा था? कभी-कभी ऐसा लगता जैसे वह जानता था कि प्रियंका क्या खोज रही है, लेकिन वह अपनी ज़ुबान नहीं खोल रहा था। प्रियंका के मन में यह सवाल उठता, “क्या वह मेरा मित्र है, या फिर वह भी किसी अज्ञात शक्ति का हिस्सा है?”

एक दिन, प्रियंका ने मोहन को एक संदिग्ध स्थिति में देखा। वह अकेला किले के पुराने पुस्तकालय में खड़ा था और कुछ दस्तावेज़ पढ़ रहा था। प्रियंका ने उसकी ओर बढ़ते हुए उसे गौर से देखा। मोहन ने प्रियंका को देखा और तुरंत दस्तावेज़ को बंद कर लिया, लेकिन प्रियंका का मन ये सवाल उठाने से नहीं रोक सका—क्या मोहन जानबूझकर कुछ छिपा रहा था?

प्रियंका ने धीरे-धीरे कदम बढ़ाए और मोहन से पूछा, “क्या तुम मुझे बता सकते हो, जो तुम पढ़ रहे थे?” मोहन का चेहरा पल भर के लिए गंभीर हो गया, और फिर उसने एक हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया, “बस कुछ पुरानी बातें, प्रियंका। ये किले के बारे में कुछ गुमनाम तथ्य हैं।”

लेकिन प्रियंका को उस मुस्कान में एक छिपी हुई बात महसूस हुई। वह अपने भीतर उठते हुए संदेह को नकार नहीं पा रही थी। क्या मोहन जानबूझकर उसे भ्रमित कर रहा था? क्या वह उसे सच से दूर रखने की कोशिश कर रहा था?

प्रियंका के भीतर अब लगातार यह द्वंद्व चल रहा था—क्या उसे अपनी जांच को रोककर वापस लौट जाना चाहिए, या फिर इस रहस्य के पीछे छुपे खतरों का सामना करना चाहिए? उसकी सोच लगातार उलझती जा रही थी। एक ओर, वह जानती थी कि इस जांच ने उसे गहरे रहस्यों के करीब पहुंचा दिया था, और अब उसे यह रहस्य खोलने की ज़रूरत थी। दूसरी ओर, वह अपने भीतर महसूस कर रही थी कि यह रास्ता केवल खतरों से भरा हुआ नहीं था, बल्कि इसमें उसकी आत्मा भी खो सकती थी।

प्रियंका अपने मन में उलझन और संदेह से घिरी हुई थी। क्या वह सच में जानने के लिए तैयार थी, या फिर यह उसके लिए बहुत बड़ा खतरा बन सकता था? क्या वह खुद को इस अंधेरे से बाहर निकाल पाएगी, या क्या वह इस रहस्य में खो जाएगी?

प्रियंका ने एक रात फिर से अपनी आँखें बंद की, लेकिन अब वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रही थी। सपने और हकीकत के बीच का फर्क अब धुंधला हो चुका था। हर रात, हर दिन, उसे यह महसूस होता कि वह और गहरे अंधेरे में फंसती जा रही है। किले का रहस्य अब उसके शरीर और आत्मा को पकड़ चुका था। क्या उसे इसे जानने का अधिकार था? क्या यह सच जानने के बाद वह खुद को फिर से पा सकेगी?

प्रियंका ने अपनी आँखें खोलीं और गहरी सांस ली। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था, जैसे वह एक गहरे दायरे में गिरने जा रही हो। लेकिन फिर भी, एक आवाज़ उसके भीतर से उठी, जो कह रही थी, “तुम्हें ये रहस्य जानना होगा।”

क्या वह जानने के लिए तैयार थी कि उसके साथ क्या होने वाला था? क्या यह रहस्य उसके लिए अधिक खतरनाक था, या फिर यह उसे सच्चाई का अहसास कराएगा? प्रियंका की यात्रा अब एक मोड़ पर आ खड़ी थी, जहां हर कदम उसके लिए एक नया सवाल था, और हर उत्तर उसके भीतर की दुविधा को और बढ़ा रहा था।

अब प्रियंका को यह समझ में आ रहा था कि यह रहस्य सिर्फ किले का नहीं था—यह उसकी खुद की आत्मा और मानसिक स्थिति का भी था। क्या वह इस अंधेरे के आगे बढ़ने के लिए तैयार थी, या क्या वह अपनी जान और आत्मा की रक्षा के लिए पीछे हट जाएगी?

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