Chapter 7: मानसिक तनाव – गहरे खड्ड में
प्रियंका के कदम धीरे-धीरे किले के भीतर बढ़ रहे थे, जैसे उसे कोई अदृश्य शक्ति खींच रही हो। किले का वातावरण इतना घना और रहस्यमय था कि उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि हर दीवार, हर चुप्पी, और हर अंधेरे कोने में कोई राज़ छुपा हुआ है। वह अपने कदमों की आवाज़ सुन रही थी, जो अजनबी और डरावनी लग रही थी। जैसे इन गूंजती आवाज़ों में कोई चेतावनी छिपी हो। उसकी छाती में लगातार धड़कन तेज़ हो रही थी—यह डर नहीं था, बल्कि एक गहरी बेचैनी थी, जो उसे अंदर से खोखला कर रही थी।
“क्या मैं सच में इस रास्ते पर चलने के लिए तैयार हूं?” प्रियंका ने खुद से पूछा। क्या सच में वह उस गहरी अंधेरे में घुसने के लिए तैयार थी, जहां हर नया कदम उसे और अधिक खोखला और भयभीत बना सकता था?
आगे बढ़ते हुए, प्रियंका ने देखा कि किले के एक खंडहर में कुछ पुराने दस्तावेज़ बिखरे पड़े थे। इन दस्तावेज़ों में किले के बारे में ऐसी जानकारी थी, जो नवलपुर के इतिहास से पूरी तरह से जुड़ी हुई थी। प्रियंका ने एक दस्तावेज़ को उठाया। जैसे ही उसने उसे खोला, एक सर्द हवा ने उसकी पूरी नसों को झकझोर दिया। यह दस्तावेज़ उन इतिहासकारों का था, जो इस किले के रहस्यों का पीछा कर रहे थे, लेकिन वे भी नाकाम रहे थे। इन दस्तावेज़ों में उस काले द्वार का ज़िक्र था, जिसे राजन और विजय ने अनलॉक करने की कोशिश की थी। प्रियंका ने दस्तावेज़ को पढ़ते हुए महसूस किया कि अब उसके पास कुछ ऐसा था, जिसे जानने के बाद वह शायद कभी भी सामान्य नहीं रह सकेगी।
लेकिन फिर, जैसे ही प्रियंका ने दस्तावेज़ का आखिरी पन्ना पढ़ा, एक कटा हुआ आभास हुआ। वह पन्ना अचानक जलने लगा, और प्रियंका ने जल्दी से उसे हाथ से गिरा दिया। “क्या यह मेरे लिए कोई चेतावनी थी?” प्रियंका ने मन ही मन सोचा।
प्रियंका की सोच में अब एक अजीब उलझन बढ़ने लगी थी। उसके अंदर एक विचार लगातार घूम रहा था: “क्या सच जानने के बाद मुझे सुकून मिलेगा, या फिर मैं और अधिक खो दूंगी?” वह जानती थी कि एक बार जब वह इस रहस्य को पूरी तरह से उजागर कर लेगी, तो पीछे मुड़ने का कोई रास्ता नहीं होगा। सच का सामना करना आसान नहीं था, और जितना अधिक वह इस सच्चाई के करीब जा रही थी, उतना ही अधिक वह अपने आप से डरने लगी थी।
प्रियंका ने पल भर को अपनी आँखें बंद कीं, जैसे उस अंधेरे में जो कुछ भी हो रहा था, उसे न देखे। लेकिन उसकी आत्मा को एक गहरी घबराहट ने जकड़ लिया था। उसे यह सवाल लगातार सताता था, “क्या वह खुद को खोने के लिए तैयार है?” क्या वह वह सब कुछ जान पाएगी, जिसे राजन और विजय ने सहेजा था?
उसकी सोच में अब कई विरोधाभासी भावनाएँ समाहित हो रही थीं। एक ओर वह सच जानने के लिए उतावली थी, और दूसरी ओर उसे डर था कि कहीं वह सच उसे पूरी तरह से न निगल जाए। वह जानती थी कि वह जिस किले की गहराइयों में जा रही थी, वह एक ऐसा स्थान था जहाँ से वापस लौट पाना कठिन हो सकता था।
प्रियंका की आँखों में हल्का डर था, लेकिन साथ ही उसके मन में एक हठ था—वह कभी हार नहीं मानेगी। किले के भीतर के रहस्यों को उजागर करना उसके लिए अब एक जुनून बन चुका था, लेकिन यह जुनून उसके भीतर के डर को और भी प्रबल कर रहा था। हर कदम, जो वह बढ़ा रही थी, जैसे उसकी आत्मा उससे माफी मांग रही हो। “क्या यह सही है?” प्रियंका ने फिर से खुद से पूछा, लेकिन उसकी आत्मा में गहरी दुविधा थी, जैसे दो ताकतें एक-दूसरे से लड़ रही हों।
आगे बढ़ते हुए, प्रियंका ने देखा कि किले के एक ओर दीवार पर एक प्राचीन चित्र था, जिसमें किसी व्यक्ति के चेहरे पर घबराहट और डर की झलक थी। यह चित्र उसे राजन की याद दिला गया। क्या वह भी इस किले में आकर उसी स्थिति में था? क्या वह भी अब इस रहस्य के दलदल में फंसा था, जैसे वह खुद थी? प्रियंका ने खुद से पूछा, “क्या राजन ने भी इसी तरह से यह रास्ता अपनाया था?”
प्रियंका को अब यह महसूस हो रहा था कि वह जो कुछ भी कर रही थी, वह केवल एक विशाल गहरी खाई में गिरने का रास्ता तय कर रही थी। वह सच जानने के लिए उत्सुक थी, लेकिन क्या वह इसे सहन कर पाएगी? क्या उसे उस अंधेरे के भीतर के सच का सामना करने की शक्ति होगी? क्या वह उस रहस्य को जानने के बाद अपनी मानसिकता को वापस पा सकेगी?
प्रियंका की आँखे अब थकी हुई थीं, उसके भीतर असमंजस और उलझन बढ़ रही थी। लेकिन तभी, उसके सामने एक और पुरानी किताब रखी हुई थी, जिसमें कुछ पन्ने मोड़े हुए थे। प्रियंका ने अपने हाथों को सेंकते हुए उस किताब को खोला। जैसे ही उसने पन्ने पलटे, उसके शरीर में एक गहरी हलचल सी दौड़ गई। क्या वह इस किताब को पढ़े बिना वापस जा सकती थी?
प्रियंका ने धीरे-धीरे पन्ने पलटते हुए महसूस किया कि वह एक गहरी खोई हुई दुनिया में प्रवेश कर चुकी थी। उसके मन में एक नई बात घुसी—“क्या वह अब भी खुद को बचा सकती है, या यह रहस्य उसे पूरी तरह निगल जाएगा?”
अंततः, प्रियंका को समझ में आया कि इस रहस्य के हर कदम पर उसे अपनी अपनी पहचान को पुनः प्राप्त करने की कोशिश करनी होगी। वह अब इस रहस्य से बाहर नहीं निकल सकती थी, और यह जानते हुए कि इस राह पर चलते हुए उसे खुद को खोने का खतरा था, प्रियंका ने अपने कदम बढ़ाए। उसके भीतर यह सवाल अब स्थायी रूप से गूंज रहा था: “क्या सच जानना वाकई में इतना महत्वपूर्ण है?”
वह अब इस रहस्य की ओर बढ़ रही थी, जैसे यह उसकी आत्मा को गहराई में खींच रहा हो।
प्रियंका ने किले के अंदर कदम रखा, और एक अजीब सी घबराहट उसके दिल में समा गई। वातावरण में एक अजीब सी चुप्प थी, जैसे किले की दीवारें खुद अपने रहस्यों को छुपाए हुए हों। चारों ओर फैला अंधेरा और पुरानी संरचनाएँ जैसे कुछ बताना चाहती हों, लेकिन कुछ कहने से डरती हों। प्रियंका के कदम धीरे-धीरे बढ़ रहे थे, लेकिन वह महसूस कर रही थी जैसे हर कदम के साथ उसका डर और बढ़ता जा रहा हो। हर दीवार, हर कंबल, हर पुरानी तस्वीर एक गहरी कहानी बयां कर रही थी, जिसे वह जानने की कोशिश कर रही थी, लेकिन क्या वह इस सच्चाई को सहन कर पाएगी?
“क्या मैं सच में इस रास्ते पर आगे बढ़ने के लिए तैयार हूं?” प्रियंका ने खुद से पूछा, और उसके अंदर एक गहरी उलझन छा गई। वह जानती थी कि जिस राह पर वह जा रही है, वह केवल खतरे से भरी नहीं, बल्कि एक गहरी खोई हुई दुनिया तक पहुंचने वाली थी। और हर नया तथ्य उसे और भी अधिक दुविधा में डाल रहा था।
किले की दीवारों पर कई फटी और उबड़-खाबड़ तस्वीरें थीं, जिनमें राजन और विजय का उल्लेख था। प्रियंका ने एक तस्वीर को ध्यान से देखा, और जैसे ही उसकी आँखें उस पर ठहरीं, उसके मन में एक सवाल उठा – “क्या ये दोनों भी इसी तरह से इस किले के रहस्यों में फंसे थे?” क्या वे भी उस रहस्य की जंजीरों में बंधे थे, जो प्रियंका अब खुद खींच रही थी?
प्रियंका के भीतर कई तरह की भावनाएँ उमड़ रही थीं। एक ओर, उसे सच जानने का जुनून था—वह अब यह जानने के लिए तैयार थी कि क्या राजन और विजय ने किसी गलती की थी या वे सचमुच किसी खतरनाक साजिश का हिस्सा थे। दूसरी ओर, उसे डर था कि कहीं वह भी उनके जैसी स्थिति में न फंस जाए।
प्रियंका ने अपनी आँखें बंद कीं, लेकिन उसके मन में सवालों की झंकार चल रही थी। क्या वह खुद को इस सच के सामने आने से बचा सकती थी? क्या उस सच को जानने के बाद उसका जीवन पहले जैसा रहेगा? वह इस द्वार से अब पीछे नहीं मुड़ सकती थी, लेकिन क्या वह उस अंधेरे के भीतर घुसने के लिए तैयार थी?
“क्या मैं अब भी वह प्रियंका हूं, जो कभी इन रहस्यों से दूर रहती थी?” प्रियंका ने खुद से सवाल किया। उसके मन में अब संदेह और भय दोनों थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि सच जानने के बाद वह अपनी पहचान बचा पाएगी या नहीं।
प्रियंका ने एक और दस्तावेज़ उठाया। किले के अंदर यह दस्तावेज़ बिखरे पड़े थे, जैसे कोई उन्हें जानबूझकर छिपा कर गया हो। प्रियंका ने दस्तावेज़ को खोला, और जैसे ही उसने पहली पंक्ति पढ़ी, उसकी आत्मा में एक हलचल दौड़ गई। वह दस्तावेज़ उन ऐतिहासिक पत्रों से संबंधित था, जो इस किले के पुराने रहस्यों को उजागर करते थे। और फिर, प्रियंका ने एक पंक्ति पढ़ी, “जो किले के रहस्यों को उजागर करेगा, वह खुद को खो देगा।” यह वाक्य उसके दिमाग में जैसे गूंजने लगा। क्या उसे सचमुच इस रहस्य को उजागर करना चाहिए था?
प्रियंका ने दस्तावेज़ को बंद किया, और फिर अपने हाथों को कुछ देर के लिए पोंछा। उसे यह महसूस हो रहा था कि वह इस अंधेरे में खोती जा रही थी। हर कदम पर उसका डर और बढ़ रहा था, और वह नहीं जानती थी कि क्या यह उसके लिए सही दिशा है या नहीं।
वह जानती थी कि अब वापस मुड़ने का कोई रास्ता नहीं था। किले की गहरी गुफाओं में, प्रियंका को हर मोड़ पर यह महसूस हो रहा था कि यह रहस्य उसे और भी अंदर तक खींच रहा था, जैसे कोई गहरी खाई हो। और जैसे-जैसे वह इस गहरे अंधेरे में घुसती जा रही थी, उसका खुद से विश्वास भी कमजोर होता जा रहा था।
“क्या मैं सच जानने के बाद वही प्रियंका बन पाऊँगी?” प्रियंका के मन में अब यह सवाल हर पल गूंज रहा था। और हर नए कदम के साथ, उसे यह समझ में आ रहा था कि सच की यह खोज न सिर्फ उसके लिए खतरनाक हो सकती थी, बल्कि उसकी आत्मा भी इसके शिकार हो सकती थी।
प्रियंका ने एक और तस्वीर पर नजर डाली, जिसमें किसी ने अपने हाथों से किले के अंदर के रहस्यों को ढूंढने की कोशिश की थी। उसकी आँखें उस तस्वीर पर थम गईं, और उसे लगा जैसे यह कोई चेतावनी हो। वह उस व्यक्ति की तरह नहीं बनना चाहती थी, जिसने इन रहस्यों का पीछा किया और अंत में खुद को खो दिया।
लेकिन प्रियंका के भीतर एक ताकत भी थी—वह इस रहस्य को उजागर करने के लिए तैयार थी, चाहे जो भी हो। वह जानती थी कि अब वह केवल अपनी यात्रा की शुरुआत पर खड़ी थी, और इस रहस्य को उजागर करने की कीमत उसे चुकानी पड़ेगी। क्या वह खुद को इस अंधेरे से बाहर निकाल पाएगी, या क्या वह भी उसी रास्ते पर चलेगी, जिस पर राजन और विजय चले थे?
प्रियंका का मन अब मानसिक संघर्षों से भर चुका था। उसका दिल यह कह रहा था कि उसे आगे बढ़ना चाहिए, लेकिन उसकी आत्मा यह महसूस कर रही थी कि वह अब एक ऐसे गहरे अंधेरे में प्रवेश कर चुकी थी, जहाँ से वापसी असंभव हो सकती थी।
प्रियंका की आँखें अब थकी हुई थीं, लेकिन वह अपने भीतर के डर को समझने की कोशिश कर रही थी। उसके मन में सवाल और संदेहों का तूफान मच रहा था, लेकिन फिर भी वह आगे बढ़ने का निर्णय ले चुकी थी। क्या वह कभी अपनी पहचान बचा पाएगी? क्या वह इस अंधेरे से बाहर आ सकेगी?
प्रियंका ने संकल्प लिया कि वह इस गहरे खड्ड को पार करेगी, चाहे कोई भी खतरनाक सच्चाई सामने आए। लेकिन यह सोचते हुए, प्रियंका ने कदम बढ़ाया, “क्या यह सच जानने का रास्ता मेरे लिए सही था?”
वह अब सच के बहुत करीब थी, लेकिन क्या सच जानने के बाद वह खुद को बचा पाएगी?