प्रियंका ने विजय की बातों को नकारते हुए, किताब को अपने हाथों में कस कर पकड़ लिया। “मैं जो चाहती हूँ, वही मैं जानूंगी। और यदि मुझे अपनी जान भी जोखिम में डालनी पड़ी, तो भी मैं यह रहस्य जानकर रहूंगी।”
विजय के चेहरे पर एक डरावनी मुस्कान फैल गई। “तुमने खुद को चुना है, प्रियंका। अब तुम जो रास्ता चुनोगी, वह तुम्हारी ही जिम्मेदारी होगी।”
प्रियंका और मोहन ने मिलकर उस नक्शे पर निशान लगाए, जो विजय ने उन्हें दिखाया था। वह जगह नवलपुर से बाहर एक प्राचीन किला था, जो अब वीरान पड़ा था। लेकिन क्या यह सचमुच राजन की गायब होने की वजह था?
प्रियंका का मन अब एक भयावह यात्रा की ओर बढ़ने को तैयार था। क्या वह इस रहस्य को सुलझा पाएगी, या फिर यह सच्चाई उसे भी खोखला कर देगी?